Madhu varma

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लेखनी कविता -परिचय -रामधारी सिंह दिनकर

परिचय -रामधारी सिंह दिनकर

सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं 
 स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं 
 बँधा हूँ, स्वप्न हूँ, लघु वृत हूँ मैं 
 नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं 

 समाना चाहता है, जो बीन उर में 
 विकल उस शून्य की झनकार हूँ मैं 
 भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में 
 सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं 

 जिसे निशि खोजती तारे जलाकर 
 उसी का कर रहा अभिसार हूँ मैं 
 जनम कर मर चुका सौ बार लेकिन 
 अगम का पा सका क्या पार हूँ मैं 

 कली की पंखुडीं पर ओस - कण में 
 रंगीले स्वप्न का संसार हूँ मैं 
 मुझे क्या आज ही या कल झरुँ मैं 
 सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं 

 मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण! जब से 
 लगा ढोने व्यथा का भार हूँ मैं 
 रुदन अनमोल धन कवि का, इसी से 
 पिरोता आँसुओं का हार हूँ मैं 

 मुझे क्या गर्व हो अपनी विभा का 
 चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं 
 पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी 
 समा जिसमें चुका सौ बार हूँ मैं 

 न देखे विश्व, पर मुझको घृणा से 
 मनुज हूँ, सृष्टि का शृंगार हूँ मैं 
 पुजारिन, धुलि से मुझको उठा ले 
 तुम्हारे देवता का हार हूँ मैं 

 सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा 
 स्वयं युग - धर्म की हुँकार हूँ मैं 
 कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का 
 प्रलय - गांडीव की टंकार हूँ मैं 

 दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा की 
 दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं 
 सजग संसार, तू निज को सम्भाले 
 प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं 

 बंधा तूफ़ान हूँ, चलना मना है 
 बँधी उद्याम निर्झर-धार हूँ मैं 
 कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी 
 बँधी है लेखनी, लाचार हूँ मैं।।

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